Tuesday, September 18, 2007

मेरा समुहीक बलात्कार

मेरा नाम नेहा, २२ सल् की खूबसूरत महीला हूँ. अभी दो साल पहले मेरी शादी कोटा नीवासी शरद से हुई है. मैं देल्ही के गीरीन

पार्क मे रहती थी. मेरी एक ननद रेखा भी करोल बाघ मे रहती है. उनके ह्स्बंड राज कुमार ठाकुर का spare पार्ट का business है. रेखा दीदी बहुत ही हँसमुख महीला है. राज जी मुझे अक्सर गहरी नज़रों से घूरते रहते थे मगर मैंने नज़र अंदाज़ कीया.

मैं बहुत सेक्सी लडकी हूँ. मेरे कालेज मे काफी चाहने वाले थे मगर मैंने सीर्फ दो लड़कों को ही लीफ़्ट दी थी. लेकीन मैंने कीसी को अपना बदन छूने नहीं दीया. मैं चाहती थी की सुहाग रात को ही मैं अपना बदन अपने पाती के हवाले करूं. मगर मुझे क्या पता था की मैं शादी से पहले ही समुहीक सम्भोग का शीकार हो जाउंगी. और वो भी ऐसे आदमी से जो मुझे सारी जींदगी

रोंद्ता रहेगा.
शादी की सारी बात-चीत रेशमा दीदी ही कर रही थी इस्लीये अक्सर उनके घर आना जाना लगा रहता था. कभी कभी मैं सारे दीन वहीँ रूक जाती थी. एक बार तो रात मे भी वहीँ रुकना पड़ा था. मेरे घर वालों के लीये भी ये नॉर्मल बात हो गयी थी. वो

मुझे वहाँ जाने से नहीं रोकते थे. शादी को सीर्फ बीस दीन बाक़ी थे. अक्सर रेखा दीदी के घर आना जान पड़ता था.

इस बार भी उन्हों ने फ़ोन कर कहा, "बन्नो, कल शाम को घर आना दोनो जेव्रतों का आर्डर देने चैलेन्गे और शाम को कहीँ खाना वाना खाकर देर रात तक घर लौटेंगे. बता देना अपनी मम्मी से की कल तू हमारे यहीं रात को रुकेगी. सुबह नहा धोकर ही वापस भेजूंगी."

"जी आप ही मम्मी को बता दो ना," मैंने फ़ोन मम्मी को पकडा दीया.

उन्होने मम्मी को कंवीन्स कर लीया. अगले दीन शाम को ६। बजे को तैयार हो कर अपनी होने वाली ननद के घर को नीकली. ब गहरा मकअप कर रखा था. शादीयों के दीन थे इस्लीये अँधेरा छाने लगा था. मैं करोल बाग स्तीथ उनके घर पर पहुंची.

दरवाजा बंद था. मैंने बेल बजाया. काफी देर बाद राज जी ने दरवाजा खोला.

"दीदी हैं?" मैंने पूछा.

वो कुछ देर तक मेरे बदन को ऊपर से नीचे तक घूरते रहे. कुछ बोला नहीं.

"हटीय़े ऐसे क्या देखते रहतें हैं मुझे. बताओं दीदी को," मैंने उनसे मजाक कीया, "कहॉ है दीदी?"

उन्होने बेडरुम की तरफ इशारा कीया और दरवाजे को बंद कर दीया. तब तक भी मुझे कोई अस्वाभावीक कुछ नहीं लगा. मगर बेडरुम के दरवाजे पर पहुँचते ही मुझे चक्कर आ गया. अंदर दो आदमी बेड पर बैठे हुये थे. उनके बदन पर सीर्फ शोट्स था.

ऊपर से वी नीवस्त्र थे. उनकी हाथों मे शराब के ग्लास थे. और सामने ट्रे मे कुछ स्नेक्क्स और एक आधी बोतले रखी हुई थी. अचानक पास मे नज़र गयी. पास मे टीवी पर कोई ब्लू फील्म चल रही थी. मेरा दीमाग ठनका मैंने वहाँ से भाग जाने मे ही अपनी भलाई समझी. वापस जाने के लीये जैसे ही मुडी राज की छाती से टकरा गयी.

"जानू इतनी जल्दी भी क्या है. कुछ देर हमारी मह्फील मे भी तो बैठो. दीदी तो कुछ देर बाद आ ही जायेगी," कहकर उसने मुझे जोर से धक्का दीया.
मैं उन लोगों के बीच जा गीरी. उन्हों ने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लीया.

"मुझे छोड़ दो. मेरी कुछ ही दीनों मे शादी होने वाली है. जीजाजी आप तो मुझे बचा लो. मैं अपके साले की होने वाली बीवी हूँ,"

मैंने उनके सामने हाथ जोड़ कर मीन्नतें की.

"भाई मैं भी तो देखूं तू मेरे साले को सन्तुष्ट कर पायेगी या नहीं."

मैं दरवाजे को ठोकने लगी. "दीदी दीदी मुझे बचाओ," की आवाज लगाने लगी.

"तेरी दीदी तो अचानक अपने मायके कोटा चली गयी. तुम्हारी होने वाली सास की तबीयत अचानक कल रात को खराब हो गयी थी," यह कहकर राज मुझे दरवाजे के पास आकर मुझे लगभग घसीटते हुये बेड़ तक ले गए. "मुझे तेरा ख़याल रखने को कह गयी थी इस्लीये आज सारी रात हम तेरा ख़याल रखेंगें."

कहकर उसने मेरे बदन से चुन्नी नोच कर फेंक दी. तीनों मुझे घसीटते हुये बेड़ पर लेकर आये. कुछ ही देर मे मेरे बदन से सलवार और कुरता अलग कर दीये गए. मैं दोनो हाथों से अपने योवन को छुपाने की असफल कोशीश कर रही थी. तीन जोडी हाथ मेरी छातीयों को बुरी तरह मसल रहे थे. और मैं छूटने के लीये हाथ पैर चला रही थी और बार बार उनसे रहम की भीख

मांगती.फीर मेरी छातीयों पर से brassier नोच कर अलग कर दी गयी. तीनों मेरी छातीयों को मसल मसल कर लाल कर दीये थे. फीर nipples चूसने और काटने का दौर चला. मैं दर्द से चीखी जा रही थी. मगर सुनने वाला कोई नहीं था. एक ने मेरे मुँह मे कपड़ा ठूंस कर उसे मेरी ओढ़नी से बाँध दीया जीससे मेरे मुँह से आवाज ना निकले.

अचानक दो उंगलीयाँ मेरे टांगों की जोड़ पर पहुंच कर पैंटी को एक तरफ सरका दीया और दोनो उंगलीयाँ बड़ी बेदर्दी से मेरी चुत मे प्रवेश कर गयी. कुंवारी चुत पर यह पहला हमला था इसलीये मैं दर्द से चीहुक उठी.

"अरे यार ये तो पुरा सोलीड माल है. बिल्कुल अन्छुई."

उन् लोगों की आँखों मे भूख कुछ और बढ गयी. मेरी पंटी को चार हाथों ने फाड़ कर टुकड़े टुकड़े कर दीया. मैं अब बील्कुल नीवस्त्र उनके बीच लेटी हुई थी. मैंने भी अब अपने हथीयार दाल दीये.

"देख हम तो तुझे चोदेंगे जरूर. अगर तू भी हमारी मदद करती है तो यह घटना जींदगी भर याद रहेगी और अगर तू हाथ पैर मारती है तो हम तेरे साथ बुरी तरह से बालात्कार करेंगे जीसे तू सारी उमर नहीं भूलेगी. अब बोल तू हमारे खेल मे शामील होगी या नहीं."

मैंने मुँह से कुछ कहा नहीं मगर अपने शारीर को ढीला छोड़ दीया. इससे उनको पता लग गया की अब मैं उनका वीरोध नहीं करूंगी.

"प्लीज भैया मैं कुंवारी हूँ," मैंने एक आखरी कोशीश की.

"हर लडकी कुछ दीन तक कुंवारी रहती है. अब चल उठ," राज ने कहा, "अगर तू राजी ख़ुशी करवा लेती है तो दर्द कम होगा और अगर हमे जोर जबरदस्ती करनी पडे तो नुकसान तेरा ही होगा."

मैं रोते हुये उठ कर खाडी हो गयी.

"हाथों को अपने सीर पर रखो."

मैंने वैसा ही कीया.

"टागों को चौड़ी करो"

"अब पीछे घुमो."

उन्होने मेरे नग्न शरीर को हर अन्गल से देखा. फीर तीनों उठकर मेरे बदन से जोंक की तरह चीपक गए. मेरे अंगों को तरह तरह से मसलने लगे. मुझे खींच कर बीसतर पर लीटा दीया और मेरी टांगों को चौड़ा कर के एक तो मेरी चुत से अपने होंठ चीपका दीया. दुसरा मेरे सतनों को बुरी तरह से चूस रह था मसल रह था. मैरा कुंवारे बदन मे अनंद पूरं सीहरण दौरने लगी.

मेरा वीरोध पूरी तरह समाप्त हो चुक्का था.